बूंदी जिला दर्शन, bundi jila darshan

 

 बूंदी जिला दर्शन 


bundi jila darshan
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  • बूंदी के उपनाम बूंदी को बावडियों का शहर। राजस्थान की कासी छोटीकाशी वित्तीय कासी तथा बंधु का लाला कहते हैं।
  • लोकमान्यता के अनुसार बूंदी की स्थापना बूंदा मीणा ने की ।
  • सन तेरह सौ बीयालीस में देवा ने बूंदी में चौहान वंश की स्थापना कि 



  • हाडा चौहानों के प्रभुत्व होने के कारण यह क्षेत्र हाडोती कहलाया। बूंदी के साथ सक बुद्ध सिंह की रानी आनंद कुंवरी ने मराठो को राजस्थान में आने का पहली बार निमंत्रण दिया। माना जाता है कि राजस्थान में पहली बार मराठों का आगमन बूंदी में ही हुआ।
  • बूंदी के विष्णु सिंह ने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ सहायक संधि की।
  • बूंदी का क्षेत्रफल लगभग पांच हजार सात सौ छिहत्तर वर्ग किलोमीटर है।

बूंदी की नदियाँ 
घोडा पछाड नदी - यह नदी बूंदी की एक झील जोकि बिजोलिया के नाम से जानी जाती है। इस से निकलकर सागवाडा, बूंदी में मागली नदी में मिल जाती है।
अन्य नदिया -  चंबल, मांगली, मैंज, कुराल तालेडा आदि प्रमुख है।
जलाशय - नवलसागर जिसे नौ लखा जलास्य भी कहते हैं ये उम्मीद सिंह द्वारा निर्मित है।
कनकसागर - इसे दुगारी झील भी कहते हैं।
गरदडा सिंचाई परियोजना - यह होसलपुर गांव के नजदीक स्थित है।
गुंडा सिंचाई परियोजना - यह मेज नदी पर है।
अन्य बांध - नवलसागर, नवलखा, जैतसागर, इंद्राणी, भीम तल, फूलसागर, गुडाबांदा, हिंडोली, गंगा सागर, नमाना, चांदोलिया, अभयपूरा, पेच की बावडी तथा बरदा डेम 
रामगढ विषधारी अभयारण्य - बूंदी जिले में यह अभ्यारण्य तीन सौ सात वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है अरावली की पहाडियों में है। यह सापों की शरणस्थली के नाम से भी जाना जाता है। इसमें बाघ, नीलगाय, हिरण बघेरा, जंगली मुर्गे रेज, जंगली कुत्ते तथा पांच सौ प्रकार के अन्य जीव पाए जाते हैं।
कनक सागर/दुगारी पक्षी अभयारण्य - लगभग बेहतर वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। कनक सागर पक्षी अभ्यारण की घोषणा वन्यजीव विभाग द्वारा 1987 में की गई थी। इसमें हंस, सारस, जलमुर्गी स्नेक, बर्ड, ग्रेट आदि पक्षी पाए जाते हैं।
चौरासी खम्भों की छतरी - इसे धबाई की छतरी के नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण अनिरुद्ध के भाई देवा हाडा, अनिरुद्ध के भाई धाबाई कीस्मृति में करवाया गया।
रानी जी की बावडी - अनिरुद्ध की रानी नाथावती ने इसका निर्माण करवाया। यह राजस्थान की सबसे लंबी बावडीयों में से एक है।
तारागढ/तिलस्मी किला - सन 1354 ई. राय बरसिंह ने इसका निर्माण करवाया। यह दुर्ग चौदह सौ छब्बीस फिट ऊंची पहाडी पर स्थित है। इस दुर्गा का एक नक्सा सिटी पैलेस जयपुर में रखा हुआ है। इस दुर्ग में एकमात्र धीम बुर्ज जिसे चौबुर्जी कहते हैं स्थित है। जिसमें सोलहवि सदी की सबसे शक्ति शाली गर्म गुंजन तोप रखी हुई है। मेवाड के शासक लाखा ने तारागढ दुर्ग को जीतने की प्रतिज्ञा ली थी लेकिन वह इसे नहीं जीत सका तो बेबस लाखा ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए मिट्टी का नकली किला बनाकर इसे जीतकर प्रतिज्ञा पूरी की थी।
इंद्रगढ दुर्ग - यह भी बूंदी में स्थित है।
कपालीश्वर मंदिर - इंदरगढ में है।

बूंदी के चर्चित व्यक्तित्व

 सूर्यमल्ल मिश्रण - की यह बूंदी के राज्य कवि महाराव रायसिंह के दरबारी कवि थे। इन्हें रसाउतार कहा जाता है।इन्हें राजस्थान का वेदव्यास भी कहते हैं। इनकी प्रमुख कृतिया वन्स भास्कर तथा वीर सतसही है। 
कपिदत मेहता - बुंदी राज्य लोग परिषद के स्थापनाकर्ता  है।
किसनलाल सोनी -   इन्हे बूंदी में रेल लाने का श्रेय है इन्हें रेल बाबा के नाम से जाना जाता है।
  • राजस्थान राज्य की एकमात्र सहकारी चीनी मिल सहकारी शुगर मिल्स लिमिटेड के केशवराय पाटल बूंदी में स्थापित की गई 
  • राज्य का प्रथम सीमेंट कारखाना एसीसी सीमेंट उद्योग लाखेरी में स्थापित किया गया 
  • प्रतिवर्ष चौबीस जून को बूंदी महोत्सव मनाया जाता है।
  • कजली तीज बुंद की प्रसिद्ध है।
  • प्रसिद्ध लोकदेवता वीर तेजाजी की कर्मस्थली बांसा दोगारी बूंदी में स्थित है।
  • वंश भास्कर इसके अधूरे छोडे गए कार्य को मुरारीदिन ने पूरा किया था।
  • राजस्थान का प्रथम साहित्यिक पत्र सर्वहित की संपादक मेहता लगजाराम बूंदी के निवासी थे।
  • सतीप्रथा पर पहली बार रोक अठारह सौ बाईस इस्वी में बूंदी रियासत में लगाई
  • भीमताल जल प्रपात मांगली नदी पर बूंदी में है।

बूंदी चित्रशैली 

भीती चित्रों का स्वर्ग कहलाती है। वर्षा में नाचता हुआ मोर इस शेली की पर्मुख विशेषता है। बूंदी चित्र शेली का प्रारंभ सुरजन हाडा से माना जाता है। इस शेली में चित्र बनाने के लिए उम्मेदसिंह ने बूंदी चित्रशाला की स्थापनाकी थी। बूंदी शेली में सर्वाधिक पशु पक्षियों का चित्र हुआ इसलिए इसे पक्षी शेली भी कहते हैं। बूंदी शेली में रंगों की बजाय रेखाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है। राजस्थान की एकमात्र ऐसी शेली जिसमें मोर के साथ सर्प का चित्र है। बूंदी शेली के प्रमुख चित्रकार सुरजन अहमद अली तथा रामलाल आदि थे।

हाडीरानी सलाह कवर - बूंदी के जागिरदार संग्रामसिंह की पुत्री थी। उन्होंने अपने पति सलूम्बर निवासी चुण्डावत को अपना सिर काटकर निशानी के रूप में दिया था। इनकी प्रशिद युक्ति है चुण्डावत मांगी सेनानी सिर काट दे दियो छत्राणी  हाडीरानी जसवंत ने बूंदी के सांसद सत्रह साल की पुत्री।


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