मीराबाई का जीवन परिचय, Who was Mirabai history

Is Mirabai a God? What does Meera Bai mean? Who is Meera Bai husband? Who was Mirabai history? मीराबाई

मीराबाई का जीवन परिचय
मीराबाई-का-जीवन-परिचय


 मीराबाई श्रीकृष्ण की परम अनन्य भक्त थी केवल कृष्ण प्रेम  और कोई लालसा नहीं। गोपियां भी प्रेम की प्रकाश है लेकिन कलयुग में तो मीरा बाई हैं। संत महात्मा तो यहाँ तक बताते हैं कि मीरा बाई श्री कृष्ण के समय की एक गोपी है। अब कृष्ण को पाने वाले लोग कहते हैं हमे भगवान मिलते नहीं है, हमें दर्शन नहीं देते। जबकि मीराबाई जी सिर्फ दो लाइनों में इस पूरी बात का जवाब दे देती है। मीरा बाई जी कहती है
मेरे तो गिरधर
गोपाल दूसरो नहीं कोई 

Who is Meera Bai husband

 मीरा बाई जब बड़ी हुई तो उनका विवाह उदयपुर के महाराणा कुंवर भोजराज के साथ हुआ

Who was Mirabai history?

मीरा बाई कहती है मेरे तो सिर्फ और सिर्फ कृष्ण जी हैं। गिरधर गोपाल है दूसरा कोई भी नहीं है लेकिन हम सबको अपना मान बैठे हैं। पति को भी पत्नी को भी बच्चों को भी जो जो आपके संबंध है तो कहने का अभिप्राय यही है कि गिरधर गोपाल ही मेरे हैं। दूसरो न कोई जब ये सच्चा भाव आएगा तब आपको खुद ही लगेगा।
हाँ, भगवान भी आप से प्यार करते हैं तो मीरा बाई जी  की जीवनी ऐसी है श्री मीराबाई जी का जन्म मेडता में हुआ। राजस्थान में इनके पिता रतन सिंह थे। मीरा का संबंध एक राजपुताना परिवार से था।एक बार की बात है। एक बरात जा रही थी और मिरां बाई छोटी थी। सभी बच्चे छोटे थे। सभी बच्चे मिलके उस बारात को देख रहे थे। उन बच्चों में एक मीरा भी थी। तभी घोडे पर बैठा हुआ दूल्ला मीरा जी ने देखा और अपनी माँ से पूछा माँ, ये कौन है? मा  ने कहा बेटी ये दूल्हा।
मीरा ने कहा माँ फिर मेरा दुला कहा है मा ने। उसी समय मीरा को समझाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति मीरा के हाथ में दे दी और कहा ये तुम्हारा दूला है। अब मीराबाई जी के दिल में ये बात बेठ गई कि मेरे पति मेरे दुल्हे तो सिर्फ श्रीकृष्ण सांवरे सलोने हैं। अब मीरा बाई दिन रात उन्ही के साथ रहती है।
उसी के साथ सोती उसी के साथ खाती। उसी के साथ सारा दिन बिता थी। उनसे ही खेलती। उनसे ही बात करती । जब ये छोटी थी तब इनकी माँ का देहांत हो गया और उनके दादा राव दुदा ने इन्हें पाला था। फिर मीरा बाई जब बडी हुई तो उनका विवाह उदयपुर के महाराणा कुंवर भोजराज के साथ हुआ, जो उदयपुर के महाराणा सांगा के पुत्र थे। पहले तो मीरा बाई जी ने शादी से मना कर दिया था,लेकिन परिवार वालों के ज्यादा जोर देने पर व    तैयार हो गई थी। कहते हैं जिस समय मीरा बाई  के फेरे चल रहे थे, उस समय भी मीरा बाई भगवान श्रीकृष्ण का विग्रह लेकर अपने साथ बैठी थी। मीराबाई ने भगवान श्रीकृष्ण के लिए संसारिक लजा और लोक परंपरा का पूरी तरह से तैयार कर दिया था। मीरा बाई जी के गुरू थे श्री रैदास मीराबाई जी को उन्होंने राममंत्र की दीक्षा  दी थी, लेकिन उनका प्रेमकृष्ण से था। जब सच्चा सदगुरु मिल जाए तो भगवान का मिलना भी निश्चित है। इसमें कोई संदेह की बात नहीं है। जब रैदासजी ने मीरा का कृष्ण के लिए प्रेम देखा तो उन्हें भी शिष्या बना लिया क्योंकि गुरु एक शिष्य की तलाश में होता है। मीरा बाई जी का विवाह हुआ। विवाह के कुछ समय बाद उनके पति भोजराज का देहांत हो गया। पति की मौत के बाद उन्हें सती करने का भी प्रयास किया गया, जिसके लिए मीरा तैयार नहीं हुई। राणा जी ने मीरा को मारने के लिए भी दो तीन बार कोशिश की थी क्योंकि मीराबाई जी साधु संतों के समाज में बैठ जाती और खूब किर्तन करती। भगवान के मंदिर में गाती नाचती झूमती कृष्ण प्रेम में रोती थी। ये सब भोजराज के सोतेले भाई विक्रमादित्य  को पसंद नहीं था। ये सब विक्रमजीतसिंह को बिल्कुल पसंद नहीं आता था इसलिए उन्होंने मीरा बाई  को मारने के लिए एक फूलों की टोकरी में एक जहरीला साप भेजा। लेकिन जैसे ही टोकरी खोली तो टोकरी में फूल ही फूल और भगवान कृष्ण की मूर्ति थी। दूसरी बार मीरा को मारने के लिए विष का प्याला दिया गया। मीरा ने उस प्याले को चरणामृत मानकर पीलिया और ये विष मीराबाई जी को कोई भी नुकसान नहीं पहुंचा पाया। जब काफी मीरा इन सब चीजों से दुखी हो गए तो उन्होंने श्री तुलसीदासजी को पत्र लिखा। मीरा कहती हैं कि मेरे पति की मृत्यु होने के बाद मुझे ससुराल में काफी कष्ट दिया जा रहा है। मुझे भगवान कृष्ण से दूर किया जा रहा है। आप मेरे लिए कोई आज्ञा कीजिए।

इस पत्र को पढकर तुलसीदास जी ने जवाब दिया की आपका कोई भी कितना भी प्यार क्यों न हो  यदि भगवान से प्यार नहीं करता, भगवान की भक्ति में बाधा बनता है तो उसे  कोटी बाहरी सम उसे करोड बैरियों के समान त्याग देना चाहिए। यद्यपि परम से नहीं आपका कितना भी प्यार क्यों ना हो। अब तुलसीदास की ये बात मीरा बाई ने मान ली और मीराबाई जी वहाँ से फिर चल दी है। पहले मीरा बाई वृन्दावन गई हैं। जब मीरा बाई          वृन्दावन में पहुंची तो सभी मीरा बाई का दर्शन करने के लिए पहुंचे कि आज भगवान कृष्ण  परमभक्त मीरा बाई जी आई है। वहाँ पर मीरा बाई जी जीव गोस्वामी जी के दर्शन करने के लिए गई। लेकिन जीव गोस्वामी जी का ये नियम था कि वह किसी भी स्त्री से मिलते नहीं थे और ना ही किसी स्त्री का चेहरा देखते थे। उन्होंने मीराबाई से मिलने के लिए मना कर दिया और सेवक को उत्तर दिया और कहलवा दिया की हम पुरुष हैं और हम पुरुष किसी स्त्री से नहीं मिलते हैं मीराबाई जी गोस्वामी जी की इस बात पर हंसी और बडे प्रेम से बोली भैया हमने तो सुना था कि वृन्दावन में केवल एक ही पुरुष है या दूसरा पुरुष कहाँ से पैदा हो गया? जब ये उत्तर गोसवामी जी ने सुना तो दौडे दौडे आए और मीराबाई जी के चरणों में गिर पडे और कहते हैं मुझे माफ कर दीजिए आप जैसा कृशन प्रेमी आप जैसा कृष्णभक्त दुनिया में बिरले ही होते हैं। आपने आज मेरी आंखे खोल दी हैं। इस कथा का उल्लेख प्रियदास जी की कविता में भी मिलता है। मीराबाई वृन्दावन में रहने लगी फिर सोचती है मेरी द्वारिका है तो मैं क्यों नहीं द्वारिका चली जाऊँ क्योंकि एक स्त्री का अपने पति की ससुराल में रहना ही ठीक हैं। मेरे पति तो गिरधर गोपाल है लेकिन ससुराल द्वारिका है। ऐसा विचार करके मीरा बाई जी वहाँ गई।यहाँ पर खूब भगवान का करतन करती।भजन गाती साधु संतों का संघ करती, खूब आनंद होता। खूब सबसे किर्तन भजन होता था। एक बार की बात है मीरा बाई जी श्री कृष्ण के भजन में डूबी हुई है। बाहर सभी जानते हैं कि मीरा कृष्ण का भजन कर रही है। लेकिन अचानक कृष्ण को याद करते करते कृष्ण का भजन  करते करते हैं। वह श्री कृष्ण की मूर्ति में समा गयी शशरीर आज मीरा कृष्ण की मूर्ति में समा गयी है और मीराबाई की साडी का एक छोर मूर्ति के पास मिला था। भगवान ने उन्हें अपने लोक में स्थान दिया। सब लोग मीरा बाई को ढूंढते रह गए की मीरा कहाँ गई मीरा कहाँ गई लेकिन मीरा कृष्ण में समा गयी थी तो ये थी मीरा भाई जी की कथा बोलिए।
कृष्णभक्त मीराबाई जी की जय।

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