सृष्टी रचना केसे हुई / सुक्ष्म वेद में सष्टी रचना का वर्णन / सृष्टी रचना, सृष्टि की रचना कब और किसने की? , srishti rachna

सृष्टी रचना केसे हुई 


सृष्टी रचना केसे हुई

सृष्टी-रचना-केसे-हुई



भारतीय पौराणिक ग्रंथों में पृथवी समेत समूची 
सृष्टि और ब्रह्मांड की उत्पत्ति का बृहद वर्णन है ।
कुछ अलंकारिक वर्णनों के साथ विभिन्न पुरानों में भी विभिनता होते हुए 
भी वैज्ञानिक तथ्यों में उनमें गजब का सामने है।
दो सौ इन धर्म पुराना ग्रंथो में ब्रह्मांड की उत्पत्ति से संबंधित 
वैज्ञानिक घटनाओं को रोचक कथानाक के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
जैसे भविष्य पुरान में ऐसे ही एक रोचक प्रसंग में न केवल अठारह 
विद्याओं का वर्णन हुआ है बल्कि सृष्टि अर्थात ब्रम्हांड की उत्पत्ति से 
संबंधित घटनाओं का भी बडा मनोहारी वर्णन है।
भविष्य पुरान की उस कथा के अनुसार एक समय महर्षि वेद 
व्यास के सिर से महारथी सुमंतो तथा महर्षि वसिष्ठ,
महर्षि परासर,
जैमिनी प्रयागवाल के ऋषि गौतम बसम,
पायन,
सोना कृषि,
अंगिरा ऋषि और भारत बाज आदि महार्षि गन पांडव वन्स में 
उत्पन्न हुए।
बुद्धिमान और बाल साली राजा सताने की राज्यसभा में पहुंचे।
सम्राट ने उन महारथियों का अर्धादी देकर खूब स्वागत सत्कार किया और 
उन्हें उत्तम आसनों पर बैठाया तथा भली भांति उनका पूजन कर 
उनसे इस प्रकार से बिनती की की है महात्माओं आप लोगों के आगमन 
से मेरा जीवन सफल हो गया।
आप लोगों को प्रातःकाल  स्मरण करने मात्र से मनुष्य पवित्र हो 
जाता है।
फिर आप लोग तो मुझे दरसन देने के लिए स्वयं यहाँ पहुंचे हैं।
अतः आज मैं धन्य हो गया।
आप लोग कृपा करके मुझे उन पवित्र और पुण्यमयी कथाओं को 
सुनाइये,
जिनको सुनने से मेरा जीवन सफल हो जाए और मुझे परमगति प्राप्त 
हो।
तब उनसे ऋषियों ने कहा हे राजन!
इस विषय में आप हम सबके गुरु साक्षात् नारायण स्वरूप भगवान 
वेद व्यास जी से निवेदन कीजिए हुए कृपालु हैं और सभी प्रकार के 
सास्त्रों और विद्याओं के ज्ञाता हैं।
दिब्य गरंथ महाभारत के भी वही रह चाहता है।
रिसियो से इस प्रकार से सुनकर सम्राट स्तानिक ने महर्षि वेद 
व्यास जी से दिव्य कथाओं के सरवन की प्रार्थना की।
तब वेद व्यास जी ने सतानिक से कहा राजन!
यह मेरा सिस्य सुमन्तु महान तेजस्वी एवं समस्त शास्त्रों का 
ज्ञाता है।
यहाँ आपकी समस्त जिज्ञासाओं को सांत करेगा।
बाकी मुनियों ने भी वेद व्यास की बातों को अनुमोदन किया।
उसके बाद राजा सतानिक ने महर्षि सुमंतु से दिव्य ज्ञान के सरवन की 
प्रार्थना की।
तब सतानिक की प्रार्थना पर महर्षि सुमंतु ने उन्हें सृष्टि की उत्पत्ति से 
संबंधित जो बातें बताई,
उसका भविष्य पुराण में विशद वर्णन है।
महर्षि सुमंतु ने राजा सतानिक से कहा है कुलश्रेष्ठ सतानिक 
इस कथानाक को ब्रह्मा जी ने शिवजी को,
भगवान शिव विष्णु जी को,
विष्णु जी ने नारद जी को,
नाराज जी ने इंद्र को,
इंद्रा ने परासर मुनि को तथा परासर मुनि ने महर्षि वेद व्यास जी को 
सुनाया और व्यासजी से मैंने प्राप्त किया।
इस प्रकार परंपरा प्राप्त यह ज्ञान इस उत्तम भविष्य पुराण में वर्णित 
है,
जिसको मैं आपसे कहता हूँ इसे आप ध्यान से सुनिये।
इस भविष्य महापुराण की इस लोक संख्या पचास हजार है।
ब्रह्माजी द्वारा रचित इस महापुराण में पांच पर्व कहे गए हैं।
पहला भ्रम पर्व दूसरा वैष्णव पर्व,
तीसरा शेव पर्व चौथा तो तवास्ट पर्व और पांचवां प्रतिसर्ग पर्व।
पुराण के सर्ग ,प्रतिसर्ग ,वंस ,मन्वंतर तथा बंसा अनुपचारित ये पांच लक्षण बताया गए 
हैं तथा इसमें चौदह विद्याओं का भी वर्णन है।
चौदह विद्याएं कुछ इस प्रकार है चार।
वेद अर्थात ऋग्वेद,
यजुर्वेद,
सामवेद,
अथर्ववेद।
छह वेदांग अर्थात ,शिक्षा 
निरुक्त,
व्याकरण,
छंद ,
ज्योतिस ,मिमांसा,
न्याय,
पुराण तथा धर्मशास्त्र,
आयुर्वेद,
धनुर्वेद,
गंधर्व वेद,
 तथा अर्थशास्त्र।
इन चारों को मिलने से अठारह विद्याएं होती है।
सुमन्तु मुनि पुनः बोले,
हे राजन!
आप मैं भूउत्सर्ग अर्थात् समस्त प्राणियों की उत्पत्ति का वर्णन करता 
हूँ,
जिसके सुनने से सभी पापों की निवृत्ति हो जाती है और मनुष्य 
परमशांति को प्राप्त करता है।
हे तात!
पूर्वकाल में ये सारा संसार अंधकार से व्याप्त था।
कोई पदार्थ दृष्टिगत नहीं होता था।
यह सारा संसार अभिग्य था,
सत्कार्य था और प्रस्तुत सा था उस समय सुष्म,
अतिंद्रिय और सर्वभूत मैं उस पर ब्रहम परमात्मा।
भगवान भास्कर ने अपने शरीर से नानाविध सृष्टी
करने की इच्छा 
की और सर्वप्रथम परमात्मा ने जल को उत्पन्न किया तथा 
उसमें पने बीरे रूप सकती का आधान क्या इससे देवता,
असुर,
मनुष्य आधी संपूर्ण जगत उत्पन्न हुआ।
वो अब धीरे जान में गिरने से अत्यंत प्रकाशमान सुवर्ण का अंड
हो गया।
उस अंड के मध्य से सृष्टिकर्ता चतुर्मुख लोग पिता 
ब्रह्माजी उत्पन्न हुए।
नर अर्थात भगवान से जल की उत्पत्ति हुई है,
इसलिए जल को नार कहते हैं।
वह  नार जिसका पहले आयानर 
का स्थान हुआ उसे नारायण कहते हैं।
ये सब स्रूप,
अव्यक्त और नीति कारण है।
इनमें जिस पुरुष विशेष की सृष्टि हुई हुए लोक में ब्रह्मा के नाम से 
प्रसिद्ध हुए।
ब्रह्माजी ने दीर्घकाल तक तपस्या की और उस अंड के दो भाग कर 
दिए।
एक भाग से भूमि और दूसरे से प्रकाश की रचना की गई।
मध्य में स्वर्ग,
आठों दिशाओं तथा वरुण का निवास स्थान अर्थात समुंद्र बनाया।
फिर महक आदि तत्वों की तथा सभी प्राणियों की रचना की गई।
परमात्मा ने सर्प्रथम आकाश को उत्पन्न किया और फिर कर्म से 
वायु,
अग्नि,
जल और पृथवी इन तत्वों की रचना की।
दृष्टि के आदि में ही ब्रह्माजी ने उन सब के नाम और कर्म वेदों के 
निर्देशानुसार ही नियत कर उनकी अलग अलग संस्थाएं बना दी।
देवताओं के तूसित आदि गन ज्योतिष ,सनातन यज्ञ,
ग्रहनक्षत्र,
नदी,
समुद्र,
परबत ,
सम एव विस्म ,
भूमि आदि उत्पन्न कर काल के विभागों अर्थात सब सर दीन 
मास और ऋतु आदे की रचना की गई।
काम,
क्रोध आदि की रचनाकार विविध कर्मों के सद असद,
विवेक के लिए धर्म और अधर्म की रचना की और नानाविधि प्राणी
जगत की सृष्टि कर उनको सुख दुख,
हर सोक आदि इंद्रियों से संयुक्त क्या जो कर्म जिसने किया 
था तदानुसार उनकी इन्द्र,
चंद्र,
सूर्य आदि पदों पर नियुक्ति हुई।
हिंसा,
अहिंसा,
मृत्यु,
क्रूर धर्म,
अधर्म,
सत्य असत्य आदि जीवों का जैसा स्वभाव था वह वैसे ही 
उनमें प्रवेश हुआ जैसे विभिन्न ऋतुओं में वृक्षों में पुष्प,
फल आदि उत्पन्न होते हैं।
इस लोक की अभी वृद्धि के लिए ब्रह्मा जी ने अपने मुख से ब्राहमन भुजाओं 
से छत्रीय ये पूर्व अर्थात जंघा से वेस्य और चरणों से सूद्र को 
उत्पन्न किया।
ब्रह्माजी के चारों मुखों से चार वेद उत्पन्न हुए।
पूर्व मुख से ऋग्वेद प्रकट हुआ।
उसे वशिष्ठ मुनि ने ग्रहण किया।
दक्षिण मुख से यजुर्वेद उत्पन्न हुआ।
उसे महर्षि यग्यपालके ने ग्रहण किया।
पश्चिम मुख से सामवेद विस्तृत हुआ जिससे गौतम ऋषि धारण किया और 
उतर मुख से अथर्वेद भागो बोर हुआ जिससे लोग पूजित महर्षि 
सौनक ने ग्रहण किया।
ब्रह्माजी के लोक प्रसिद्ध पंचम अर्थात उधर मुख से अठारह 
पुराण इतिहास और यम आदि स्मृति शास्त्र उत्पन हुए हैं।
इसके बाद ब्रह्माजी ने अपने देह के दो भाग किए।
दाहिने भाग से पुरुष तथा बाये भाग को स्त्री बनाया और उसमें विराट पुरुस  उसकी सृष्टि की।
उस विराट पुरुष ने नाना प्रकार की सृष्टि रचने की इच्छा से बहुत काल 
तक तपस्या की और सर्वपर्थम दस ऋषियों को उत्पन्न किया।
जो प्रजापति कहलाये उनके नाम इस प्रकार हैं 
नारद  
भिर्गु 
वशिष्ट,
प्रचेता,
पुला,
कृतु,
पुल्सत्य,
अत्री,
अंगीरा और मारीचि।
इस प्रकार अन्य महातेजस्वी रिसी भी उत्पन्न हुए।
अंतर देवता ऋषि,
देत्य और राजस्वी,
पिसाच गन्धर्व अपसरा पितर मनुष्य,
सर्प आदि योनियों के अनेक गन उत्पन्न किए गए और उनके रहने 
के स्थानों को बनाया।
विद्युत मेग वज्र  इंद्रधनुष धूमकेतु अर्थात पुन्छ्ल तारे 
उल्का निर घात अर्थात बादलों की गडगडाहट और छोटे बडे नक्सछेत्रो को  उत्पन्न किया गया।
मनुष्य कीनर अनेक प्रकार के मतस्य बरा,
पक्षी हाथी,
घोडे,
पशु,
मिरग 
कृमि,
कीट पतंग आदि छोटे बडे जीव जंतु को उत्पन्न किया।
इस प्रकार उन भास्कर देव ने तीन लोक की रचना की हे राजन!
इस सृष्टि की रचना कर सृष्टी में जिन जिन जीवों का जो जो कर्म और क्रम 
निर्धारित किया गया उसका मैं वर्णन करता हूँ।
आप यहाँ भी सुने हाथी ब्याल मिरग ,
विविध पशु पिसाच । मनुष्य तथा राक्षस आदि जरायूज अर्थात गर्व से उत्पन्न होने वाले 
प्राणी है।
मतस्य कछुए सर्प मगर तथा अनेक प्रकार के पक्षी अंडज 
अर्थात अंडे से उत्पन्न होने वाले हैं।
मक्खी मच्छर जू खटमल वाला भी जीव स्वदेज हैं
पसीने की उसमें से ये उत्पन्न होते हैं।
भूमि को उद्योग कर उत्पन्न होने वाले ब्रिज है और सादीयाँ आदी  
सृष्टि हैं जो फल के पकने तक रहे,
आगे पीछे सूख जाए या नष्ट हो जाये तथा जो बहुत फूल और फल वाले 
ब्रिज हैं,
हुए और सभी कहलाते हैं और जो उसके आए बिना ही फलते हैं वे 
वनस्पति हैं तथा जो फूलते और फलते हैं उन्हें ब्रिज कहते हैं।
इसी प्रकार गुल्म,
बल्ली बितान आदि के अनेक भेद होते हैं।
ये सब बीज से अथवा कांड से अर्थात ब्रिज की छोटी सी साखा 
काटकार इस भूमि में गार्ड देने से ये उत्पन्न होते हैं।
ये  आदि की चेतना शक्ति संपन्न है।
इन्हें सुख दुख का ज्ञान रहता है परंतु पूर्व जन्म के कर्मों के 
कारण तमोगुण से आछत रहते हैं।
इसी कारण से मनुष्यों की भांति ये बातचीत आधी करने में समर्थ नहीं हो 
पाते।
इस प्रकार यह अचिंत चराचर जगत भगवान भास्कर से उत्पन्न हुआ है।
जब वह परमात्मा निद्रा का आश्रय ग्रहण कर सहन करते हैं तब यह 
संसार उनमें लीन हो जाता है और जब निंद्रा का त्याग करते हैं 
अर्थात वह जागते हैं तो फिर से सब सृष्टि उत्पन्न हो जाती है और 
समस्त जीव पर्व कर्मानुसार अपने अपने कर्मों में प्रवृत्त हो जाते हैं।
वह परमात्मा एक संपूर्ण चराचर जगत को जाग्रत और 
संयम दोनों अवस्थाओं द्वारा बार बार उत्पन्न आर विनिष्ट करते 
रहते हैं तो याद ही जानकारी पौराणिक ग्रंथों अर्थात भविष्यपुराण में वर्णित ब्रम्हांड की सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में तो उम्मीद करते हैं।
फ्रेंड्स आप सभी को हमारा  post पसंद आया होगा।

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