असहयोग आंदोलन/ खिलाफत आंदोलन, non-cooperation movement

 असहयोग आंदोलन/ खिलाफत आंदोलन

असहयोग आंदोलन
असहयोग आंदोलन/ खिलाफत आंदोलन

खिलाफत आंदोलन एवं भारत में उत्तरदायी शासन न करने के विरोध में गाँधीजी ने भारत में असहयोग आन्दोलन करने की घोषणा की । दिसम्बर 1920 ईं. नागपुर में कांग्रेस के वार्षिक सम्मेलन में इसका प्रस्ताव रखा तथा सितम्बर 1920 ईं. में कलकत्ता के विशेष अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन के प्रस्ताव की पुष्टि कर दी | यह आंदौलन अगस्त 1920 ई. से शुरू किया गया । इसी दिन प्रातःकार्ल तिलक का देहान्त हो गया । असहयोग आंदोलन के दौरान नकारात्मक एवं रचनात्मक कार्यों की सूची बनाई गई, जिसमें सम्पूर्ण देश में कांग्रेस की कमेटियों का निर्माण किया गया। विरोध स्वरूप विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई तथा स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने को कहा गया। इसी दौरान राष्ट्रीय स्कूल एवं कॉलेजों की स्थापना की गई।

17 नवम्बर, 1921 ई. को प्रिन्स ऑफ वेल्स के भारत आगमन के दिन पूरे देश में हड़ताल का आयोजन किया गया। दिसम्बर, 1921 में कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करने की अनुमति दी गई। 5 फरवरी, 1922 ई. में 'चौरी-चौरा' (गोरखपुर उत्तर प्रदेश) नामक स्थान पर हिंसक भीड़ ने पुलिस थाने को जला दिया, जिसमें 22 पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गई, इन हिंसक घटनाओं के कारण असहयोग आन्दोलन को स्थगित करने की घोषणा कर दी तथा 12 फरवरी, 1922 को बारदोली आंदोलन गांधीजी के द्वारा वापस ले लिया गया। गांधीजी के आन्दोलन को वापिस लेने के निर्णय का तीव्र एवं व्यापक विरोध हुआ, तो वहीं जिन्ना ने असहयोग आन्दोलन को गांधी की हिमालयी भूल कहा। गांधीजी के असहयोग आन्दोलन का सबसे सफल प्रभाव विदेशी कपड़ों का बहिष्कार कार्यक्रम था। कांग्रेस ने हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया। खादी का प्रयोग एवं स्वदेशी का प्रचार आगामी आन्दोलन का भाग बन गया। कांग्रेस अब राष्ट्रव्यापी संस्था बन चुकी थी ।
ध्यातव्य रहे-गाँधी जी की अध्यक्षता में एकमात्र AICC (ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी) अधिवेशन, 1924 में बेलगाम में आयोजित किया गया था।

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