खेजड़ली बलिदान पूरी कहानी अमृता देवी विश्नोई


खेजड़ली बलिदान- अमृता देवी विश्नोई

वर्तमान में वृक्षारोपण एवं वृक्षों की सुरक्षा के लिए बड़ी योजनाएं लागू की जा रही हैं। इन्हीं वृक्षों को बचाने के लिए आज से लगभग 300 वर्ष पहले मारवाड़ में खेजडली गाँव में एक  बहुत बड़ा बलिदान हुआ।

जोधपुर के महाराजा अभयसिंह को अपने नये महल के लिए लकड़ी की जरुरत थी। भाद्रपद शुक्ल दशमी वि.सं. 1787 के दिन महाराजा ने खेजड़ली गांव में खेजड़ी वृक्ष की लकड़ी काटने के लिए सैनिक टुकड़ी भेजी। इस गांव की ही एक महिला अमृतादेवी विश्नोई ने खेजड़ी वृक्ष के काटने का विरोध किया और पेड़ से लिपट गई। उसके साथ उसकी तीन पुत्रियां भी थी। अमृता देवी ने कहा वृक्ष की रक्षा के लिए वह अपनी जान भी देने को तैयार है। उसने यह कहते हुए सिर आगे कर दिया कि 'सर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जाण' सिर के बदले वृक्ष बच जाता है तो भी सस्ता सौदा है। उसकी तीनों पुत्रियों की भी यही स्थिति हुई। महाराजा के सैनिकों ने विरोध करने पर अमृतादेवी व उसकी पुत्रियों के सिर धड़ से अलग कर दिया। उस दिन मंगलवार था जो कि काला मंगलवार के नाम से जाना जाता है महाराजा के सैनिकों द्वारा वृक्ष काटने के विरोध में 363 अन्य विशनोई भी महाराजा के सैनिकों के हाथों इसी तरह से मारे गये। तब से विश्नोई समाज में वृक्ष काटना निषिद्ध है।  इस घटना से वातावरण उत्तेजित हो गया और वहाँ उपद्रव की स्थिति हो गई गिरधरदास भण्डारी के नेतृत्व में वृक्ष " काटने वाली पार्टी को भी इससे गहरा आघात लगा। वे अपना 
मिशन छोड़कर जोधपुर आ गये और महाराजा को पूरा घटनाक्रम बताया। महाराजा ने तुरंत वृक्ष की कटाई रोकने का आदेश दिया और इस क्षेत्र को वृक्ष व जानवरों के लिए संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया 

AMRITA DEVI
AMRITA DEVI

खेजड़ी रक्षा हेतु अमृतादेवी एवं पुत्रियों का बलिदान खेजड़ी वृक्ष की रक्षा के लिए सामूहिक रुप से अपने प्राणों की बलि देना विश्व में यह अनूठी घटना है। खेजडली गाँव में अमृतादेवी व शहीदों की स्मृति में अब एक स्मारक बना हुआ है। विश्नोई जाति के लोग हिरणों की भी इसी तरह से रक्षा करते है


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Dosto aaj me aapko is video me jo jodhpur jile ke khejadli village me plant s ki raksha karte hue jo amrita devi shahid hui unki kahani bataunga
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