पृथ्वीराज चौहान व संयोगिता की प्रेम कहानी
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मैं शिसपाल और आज आपको बताने जा रहा हूँ पृथ्वीराज चौहान और
संयोगिता की अमर प्रेम कहानी के बारे में।
तो चलिए शुरू करते हैं दोस्तों दिल्ली की गदी पर बैठने वाले अंतिम
हिंदू शासक और भारत के महान वीर योद्धाओं में सुमार पृथ्वीराज
चौहान का नाम कौन नहीं जानता।
एक ऐसा वीर योद्धा जिसने अपने बचपन में ही सेर का जबडा फाड़ डाला
था और जिसने अपनी दोनों आंखें खो देने के बावजूद भी सब्दभेदी बाण
से भरी सभा में मोहम्मद गौरी को मृत्यु का रास्ता दिखा दिया
था।
ये सभी जानते हैं कि पृथ्वीराज चौहान एक वीर योद्धा थे लेकिन ये
बहुत कम ही लोगों को पता होगा कि वे प्रेमी भी थे।
वो कन्नौज के महाराज जयचंद्र की पुत्री संयोगिता से बेइंतहां प्रेम
करते थे।
दोनों में प्रेम इतना था कि राजकुमारी को पाने के लिए पृथ्वीराज चौहान
स्वयंबर के बीच में उनका अपहरण कर लाए थे।
आज इस post में हम आपको संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान की प्रेम
कहानी से लेकर मोहम्मद गौरी के अंत तक की कहानी सुनाएंगे।
सबसे पहले आपको बताते हैं कि दिल्ली की सत्ता संभालने के साथ कैसे हुआ था
पृथ्वीराज चौहान को संयोगिता से प्यार |
दोस्तों बात उन दिनों की है,
जब पृथ्वीराज चौहान अपने नाना और दिल्ली के सम्राट महाराजा
आनंदपाल की दिल्ली की राजगद्दी पर बैठे।
गौरतलब है महाराजा अनंगपाल को कोई पुत्र नहीं था,
इसलिए उन्होंने अपने दामाद अजमेर के महाराज और पृथ्वीराज चौहान के
पिता सोमेस्वर चौहान से आग्रह किया कि वे पृथ्वीराज को दिल्ली का युवराज
घोषित करने की अनुमति प्रदान करें।
महाराजा सुमेश्वर सिंह ने सहमती जता दी और पृथ्वीराज को दिल्ली का
युवराज घोषित कर दिया गया।
काफी राजनीतिक संघर्षों के बाद पृथ्वीराज दिल्ली के सम्राट बने।
दिल्ली की सत्ता संभालने के साथ ही पृथ्वीराज को कन्नौज के
महाराज जयचंद की पुत्री संयोगिता भा गई।
उस समय कन्नौज में महाराज जयचंद्र का राज था।
उनकी एक खूबसूरत राजकुमारी थी,
जिसका नाम सहयोगिता था।
जयचंद्र पृथ्वीराज की यस वृद्धि से इर्ष्या का भाव रखा करते थे।
एक दिन कन्नौज में एक चित्रकार पन्ना राय आया है,
जिसके पास दुनिया के महारथियों के चित्र थे और उन्ही में से एक चित्र
था दिल्ली के युवा सम्राट पृथ्वीराज चौहान का।
जब कन्नौज की लडकियों ने पृथ्वीराज के चित्र को देखा तो ये देखते ही रह
गई।
सभी युवतियां उनकी सुंदरता का बखान करते नहीं थक रही थी।
पृथ्वीराज की तारीफ की ये बातें सहयोगिता की कानों तक पहुंची और वह
पृथ्वीराज के उस चित्र को देखने के लिए ललायित हो उठी |
अब आप को बता रहे हैं पृथ्वीराज चौहान को किस कारण राजकुमारी संयोगिता
से प्यार हुआ।
दोस्तों सहयोगिता अपनी सहेलियों के साथ उस चित्रकार के पास पहुंची और
चित्र दिखाने को कहा।
चित्र देख पहली ही नजर में सहयोगिता ने अपना सर्वस्व पृथ्वीराज को दे
दिया।
लेकिन दोनों का मिलन इतना सहज ना था।
महाराज जयचंद्र और पृथ्वीराज चौहान में कट्टर दुश्मनी थी।
इधर चित्रकार ने दिल्ली पहुंचकर पृथ्वीराज से भेंट की और राजकुमारी
संयोगिता का एक चित्र बनाकर उन्हें दिखाया जिसे देखकर पृथ्वीराज के मन
में भी सहयोगिता के लिए प्रेम उमड पडा।
उन्हीं दिनों महाराजा जयचंद्र ने सहयोगिता के लिए एक स्वयंबर का
आयोजन किया।
इसमें विभिन्न राज्यों के राजकुमारों और महाराजाओं को आमंत्रित किया गया।
लेकिन इससे अवस् जयचंद्र ने इस स्वयंबर में पृथ्वीराज चौहान को
आमंत्रण नहीं भेजा।
अब आपको बताते हैं कि उस सवयम्बर में आखिर हुआ क्या था।
दोस्तों राजकुमारी के पिता ने चौहान का अपमान करने के उद्देश्य से
स्वयंबर में उनकी एक मूर्ति को द्वारपाल की जगह खडा कर दिया।
राजकुमारी संयोगिता जब वरमाला लिए सभा में आई तो उन्हें अपने पसंद का
वर पृथ्वीराज चौहान कहीं नजर नहीं आए।
इसी समय उनकी नजर द्वारपाल की जगह रखी पृथ्वीराज की मूर्ति पर पडी और
उन्होंने आगे बढकर वरमाला उस मूर्ति के गले में डाल दी।
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पृथ्वीराज और सहयोगिता |
वास्तव में जिस समय राजकुमारी ने मूर्ति में वरमाला डालना चाहा
उसी समय पृथ्वीराज स्वयं आकर वहाँ खडे हो गए।
और माला उनके गले में पड गई।
राजकुमारी सहयोगिता द्वारा पृथ्वीराज के गले में वरमाला डालते ही पिता
जयचंद्र आग बबूला हो गए।
वह तलवार लेकर सहयोगिता को मारने के लिए आगे आए लेकिन इससे
पहले कि वह सहयोगिता तक पहुंचे पृथ्वीराज सहयोगिता को अपने साथ
लेकर वहाँ से निकल पडे थे।
स्वयंबर से राजकुमारी को उठाने के बाद पृथ्वीराज दिल्ली के लिए रवाना हो गए।
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पृथ्वीराज चौहान व संयोगिता |
आगे जयचंद्र ने पृथ्वीराज से बदला लेने के उद्देश्य से मोहम्मद गौरी से
मित्रता कर ली और दिल्ली पर आक्रमण कर दिया।
पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को सोलह बार परास्त किया लेकिन
पृथ्वीराज चौहान ने शह्र्द्य का परिचय देते हुए मोहम्मद गौरी को हर
बार जीवित छोड दिया।
राजा जयचंद्र ने गद्दारी करते हुए मोहम्मद गौरी को सैन्य
मदद की और इसी वजह से मोहम्मद गौरी की ताकत दुगुनी हो गई।
तथा 17 वि बार के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गौरी के द्वारा
पराजित होने पर पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गौरी के सैनिकों द्वारा उन्हें बंदी
बना लिया गया।
उनकी आंखे गर्म सलाखें से जला दी गई।
इसके साथ अलग अलग तरह की उन्हें यातनाएं भी दी गई।
अब आपको बता रहे हैं कि किस तरह पृथ्वीराज चौहान ने अंधे होते हुए भी
सब्दभेदी बाण से मोहम्मद गौरी को मौत का घाट उतारा था।
अंततः मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज को मारने का फैसला किया।
तभी महा कवि चंदवरदायी ने मोहम्मद गौरी तक पृथ्वीराज के एक
कला के बारे में बताया।
चंद्र बरदाई जोकि एक कवी और खास दोस्त था पृथ्वीराज चौहान का।
उन्होंने बताया कि पृथ्वीराज चौहान को सब्दभेदी बाणे छोडने की कला में
महारत हासिल है।
यह बात सुनकर मोहम्मद गौरी ने रोमांचित होकर इस कला के प्रदर्शन का
आदेश दिया।
प्रदर्शन के दौरान गौरी के मुख से निकले हुए सावास आरंभ करो
लब्ज के उद्घोष के साथ ही भरी महफिल में चंद्र बरदाई एक दोहे
द्वारा पृथ्वीराज चौहान को गौरी के बैठने के स्थान का संकेत दिया
जो इस प्रकार था चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता
ऊपर बेठा सुल्तान मत चूके चौहान तभी अचूक सब्दभेदी बाण से
पृथ्वीराज चौहान ने गौरी को मार दिया।
साथ ही दुश्मनों के हाथों मरने से बचने के लिए चंद्र बरदाई और पृथ्वीराज
ने एक दूसरे का वध कर दिया।
जब सहयोगिता को इस बात की जानकारी मिली तो वह एक विरांगना की भांति
सती हो गयी।
इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में आज भी यह प्रेम कहानी अमर है
आशा करता हूँ पृथ्वीराज चौहान पर बनाया गया हमारा post आप सबको पसंद आया होगा।
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