लेला मजनू की प्रेम कहानी
भारत पाकिस्तान की सरहद पर
श्रीगंगानगर जिले के बिजोर गांव में एक मजार पर दिन ढलते ही
कव्वाली के धुनों के बीच सैकडों प्रेमी जोडे अपनी प्रेम की अमर होने की
दुआ मांगते देखे जा सकते हैं या कोई और मजार नहीं है बल्कि दुनिया
को अपनी बेइंतहा मोहब्बत से पहचान कराने वाले लैला मजनू की
कब्र पर बना है।
यहाँ हर साल पंद्रह जून को मेला लगता है जिसमें आने वालों का
पूरा यकीन रहता है कि उनकी फरियाद यहाँ जरूर कबूल होगी।
दुनिया में सैकडों साल बाद भी लैला मजनू की प्रेम कहानी अमर मानी जाती
है।
कहा जाता है कि लैला और मजनू एक दूसरे से बेपनाह मोहब्बत
करते थे लेकिन उन्हें जबरन जूदा कर दिया गया था।
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उनके अमर प्रेम के चलते ही लोगों ने दोनों के नाम के बीच और
लगाना मुनासिब नहीं समझा और दोनों हमेशा के लिए लैला मजनू के
रूप में ही पुकारे गए।
यहाँ के लोग इस मजार को लैला मजनू की मजार कहते हैं।
चलिए अब आपको बताते हैं लैला मजनू की दास्तान के बारे में उनकी कहानी क्या
थी दोस्तों या उस दौर की कहानी है जब प्रेम करना एक गुनाह माना
जाता था।
अरब पति साह अमारी के बेटे कैस जिससे आगे चलकर मजनू कहा गया की
किस्मत में यह प्रेमरोग हाथ की लकीरों में ही लिखा था।
उसे देखते ही ज्योतिषियों ने भविष्वाणी की थी कि कैस प्रेम
दीवाना होकर दर दर भटकता फिरेगा।
ज्योतिषियों की भविष्यवाणी को झूठलाने के लिए साह अमारी ने खूब
मन्नते की की उनका बेटा कैसे इस प्रेम रोग से महरूम रहे हैं।
लेकिन कुदरत अपना खेल दिखाते ही है तमिसकी मदरसे में जब
उसने नाजद साहब की बेटी लैला को देखा तो पहली नजर में ही
केस उसका आसिक हो गया।
मौलवी ने उसे समझाया कि वह प्रेम की बातें भूल जाये और पढाई में
अपना ध्यान लगाए।
लेकिन प्रेम दीवाने ऐसी बातें कहाँ सुनते हैं केस की मोहब्बत का असर
लैला पर भी हुआ और दोनों ही प्रेम सागर में डूबे।
नतीजा यह हुआ कि लैला को घर में कैद कर दिया गया और लैला
की जुदाई में कैस दीवानों की तरह मरा मरा फिरने लगा।
उसकी दीवानगी देखकर लोगों ने उसे मजनू का नाम दिया।
आज भी लोग उसे मजनू के नाम से ही जानते हैं और मजनू मोहब्बत
का पर्याय बन गया है।
लैला मजनू को अलग करने की लाख कोशिशें की गई लेकिन
सब बेकार साबित हुई।
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लैला की तो वक्त नामक व्यक्ति से सादी भी कर दी गई थी लेकिन उसने
अपने सौहर को बता दिया कि वह सिर्फ मजनू की है।
मजनू के अलावा उसे और नहीं छू सकता।
वक्त ने उसे तलाक दे दिया और मजनू के प्यार में पागल लैला
जंगलों में मजनू मजनू पुकारकर भटकने लगी।
जब मजनू से मिला तो दोनों प्रेमपाश में बंध गए।
लहला की माँ ने उसे अलग किया और घर ले गई।
मजनू के गम में लैला ने दम तोड दिया।
लहला की मौत की खबर सुनकर मजनू भी चल बसा।
लोगों का मानना है कि लहला मजनू सिंध प्रांत के रहने वाले थे।
यह तो सब मानते हैं लेकिन उनकी मौत कैसे हुई इसके बारे में कईयों
के कई मत हैं।
कुछ लोगों का मानना है कि लैला के भाई को जब दोनों के इसक पता
चला तो उससे बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने क्रूर तरीके से मजनु की
हत्या कर दी।
लैला को जब इसका पता चला तो वह मजनूं के सब के पास पहुंची और खुदकुशी
कर जान दे दे।
कुछ लोगों का मत है कि घर से भागकर दर दर भटकने के बाद
यहाँ तक पहुंचे और प्यास से उन दोनों की मौत हो गई।
वहीं कुछ लोग यह भी मानते हैं अपने परिवार वालों और समाज से दुखी
होकर उन्होंने एक साथ सुसाइड कर लिया था।
खैर जो भी हुआ हो लेकिन दोनों को साथ साथ दफनाया गया ताकि
इस दुनिया में न मिलने वाले लैला मजनू जन्नत में जाकर एक हो जाएं।
हर साल पंद्रह जून को लैला मजनू की मजार पर दो दिन का मेला लगता
है जिसमें बडी संख्या में हिंदुस्तान और पाकिस्तान के प्रेमी और
नवविवाहित जोडे आते हैं और आपने सफल विवाहिक जीवन की कामना
करते हैं।
खास बात यह है कि इस मेले में सिर्फ हिंदू या मुस्लिम ही नहीं
बल्कि बडी संख्या में सिख और ईसाई धर्म के लोग भी सरीक होते
हैं।
यहाँ आने वाले लोगों के मुताबिक यहाँ मांगी जाने वाली हर मन्नत यह पवित्र
मजार प्रेम के सबसे बडे धर्म की एक मिसाल है।
समय की गति ने उसकी कब्र को नष्ट कर दिया है।
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लेकिन लैला मजनू की मोहब्बत जिंदा है और जब तक दुनिया है
तब तक साइद जिंदा ही रहेगी।
और चलते चलते दोस्तो,
आपसे यही कहना चाहेंगे कि अगर आपको ही ऐसी ऐतिहासिक कहानियाँ पसंद है,
आप भी किसी प्रेम कहानी के बारे में जानना चाहते हैं तो आप हमें कमेंट के माध्यम से
बताएं और हम आपको अपने post के माध्यम से उस प्रेम कहानी के बारे में
बताएंगे।
तो आशा करता हूँ लैला मजनू की प्रेम कहानी पर बनाये गए हमारे post आप सबको पसंद
आया होगा।
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