धर्मसूत्र व स्मृतिया
1. गौतम धर्मसूत्र : ये सबसे प्राचीनतम धर्मसूत्र है। यह 400 से 600 ईसा पूर्व की रचना है। इसमें कर, अर्थदण्ड, ऋण, सम्पति का विभाजन, स्त्री-धन इत्यादि विषयों पर चर्चा मिलती है।
2. बौधायण धर्मसूत्र' : इसमें चारों वर्ण की जातियों तथा उपजातियों व मिश्रित जातियाँ, राजा के कर्त्तव्य, वसीयत, सम्पत्ति के विभाजन इत्यादि पक्षों पर वर्णन मिलता है।
3. आपस्तम्ब धर्मसूत्र : यह गौतम एवं बौधायन के बाद की रचना है। इसे 600 से 300 ईसा पूर्व के बीच रखा जा सकता है। इसमें चारों वर्ण, पिता के जीवित रहते, सम्पति का विभाजन इत्यादि पर चर्चा
है।
4. वशिष्ट धर्मसूत्र : यह अन्य विचारों के अतिरिक्त राजा - प्रजा के आचारों को संयमित करने वाला ग्रंथ है। धन सम्पति का पष्ठांश कर के रूप में देने का इसमें विधान है। इसकी रचना 300 से 100 ईसा पूर्व की मानी जाती है।
5. विष्णु धर्मसूत्र : इसमें राजधर्म, कार्षापण, बटखरे, अर्थदण्ड, ब्याज बंधक, ऋण, धन तथा राजस्व का भी सविस्तार वर्णन है।
प्राचीन भारत में कर एवं दण्ड विधान
इसके अतिरिक्त हारित धर्मसूत्र, शंखलिखित धर्मसूत्र, वैश्वानस धर्मसूत्र, औशनश धर्मसूत्र इत्यादि में भी वर्णित है। लेकिन इन सबों में राजस्व इत्यादि की चर्चा नहीं के बराबर है।
धर्मसूत्रों के अतिरिक्त स्मृतियों में इसकी पुष्कल चर्चा है। ऐसे तो स्मृतियों की संख्या 108 मानी जाती है लेकिन 20 स्मृतियाँ प्रमुख हैं। यहाँ उन महत्वपूर्ण स्मृतियों की संक्षिप्त चर्चा अभीष्ट है
1. मनु स्मृति : यह सबसे पुरानी स्मृति है। इसके प्रतिपाद्य विषय अत्यंत ही व्यापक हैं। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के समान इसमें अन्य विषयों के अतिरिक्त आर्थिक चिंतन भी हुआ है। इसमें राजधर्म, मुकदमा, ऋण, क्रय-विक्रय, बाजार का विनियमन तथा ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के अधिकार वर्णित हैं। इसके प्रतिपाद्य विषयों में राजस्व व्यवस्था भी एक है।
2. याज्ञवल्क्य स्मृति': यह स्मृति आचार, व्यवहार और प्रायश्चित तीन विभागों में वर्णित है। आर्थिक पक्ष पर ऋण, ब्याज, सम्पति, विभाजन इत्यादि पर चर्चा आई है।
3. नारद स्मृति' : नारद स्मृति पर डॉ. जॉली सम्पादित न्याय संबंधी विधि वर्णित है। इसके अतिरिक्त ऋणदान, बंधक, सहकारिता, क्रीतानुशय है। इसमें स्त्री-पुरुष सहयोग तथा राजस्व प्रणाली वर्णित है।
4. वृहस्पति स्मृति : यह डॉ. जॉली द्वारा सम्पादित- वृहस्पति स्मृति उपलबध है।
5. विष्णु स्मृति' : यह स्मृति भी जुलियस जॉली के द्वारा सम्पादित है।
6. पराशर स्मृति 6 : इस स्मृति में 12 अध्याय एवं 593 श्लोक हैं। इसमें युगधर्म, चारों युगों का अन्तर्भेद, सन्ध्या उपासना, वर्णों की जीविका के साधन, आत्महत्या, पतिव्रता नारियों का पुरस्कार आदि की चर्चा की गई है।
7. गौतम स्मृति : यह गद्य शैली में लिखी गई है। इसमें आपद् धर्म विशेष रूप से विचारणीय है, इसमें संस्कारों का वर्णन है। गौतम ने लौकिक और पारलौकिक अथवा भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में समन्वय का उपदेश दिया है।
8. अत्रि स्मृति : यह अपेक्षाकृत छोटी स्मृति है। इसमें धार्मिक कर्त्तव्यों का स्पष्टता से वर्णन किया गया है। ब्राह्मणों के मध्यपात्र एवं कुपात्र को चिन्हित किया गया है। इसमें 398 श्लोक संग्रहित हैं।
9. औशनस स्मृति' : इसमें शिष्टाचार और शिक्षा के महत्व पर विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसमें वाहय शिष्टाचार की विधि भी बताई गई है।
10. शातातप स्मृति : इसका प्रतिपाद्य विषय प्रायश्चित है। इसमें रोगों और पाप का विस्तार से वर्णन है। वस्तु के दान का विधान इसमें बतलाया गया है।
11. वशिष्ठ स्मृति" : इसमें वैश्य और ब्राह्मण को विशेष उपदेश दिये गए हैं। पण्य सामग्री को ऊँचे दाम में बेचना देश-द्रोह की संज्ञा दी है।
12. आंगिरस स्मृति" : इस स्मृति में प्रायश्चित की विवेचना ही प्रतिपाद्य है। इसमें प्रायश्चित का विधान, उपवास, चन्द्रायण व्रत इत्यादि का वर्णन सविस्तार है।
13. यम स्मृति३ : इसमें मात्र प्रायश्चित की विवेचना है।
14. लिखित स्मृति 14 : इसके अन्तर्गत इष्टापूर्त कर्म का विधान तथा लक्षण बताया गया है। गंगा में अस्थि प्रवाह, श्राद्ध और अशौच इत्यादि का भी उल्लेख किया गया है।
15. कात्यायन स्मृति 15 : इसमें स्त्री के अधिकारों की चर्चा विस्तार से की गई है। साथ ही इसमें श्राद्ध, अग्निहोत्र, नवान्न-यज्ञ आदि धार्मिक कृत्यों की विवेचना की गई है।
16. सम्वर्त स्मृति" : इस स्मृति में दान आदि के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। इसमे नशेबाजी की घोर भर्त्सना की गई है तथा सुरापान के लिए चंन्द्रायण व्रत की सलाह दी गई है।
17. शंख स्मृति7 : चारों वर्ण के कर्म संस्कार, अतिथि सेवा, आश्रम, प्राणयाम, ध्यान योग, नित्य क्रिया, गायत्री, जप विधि, श्राद्ध तर्पण आदि विषयों की चर्चा की गई है।
18. हारित स्मृति 18 : इसमें वर्णाश्रम धर्म एवं योग का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इसमें सभी वर्णों को स्वकर्मों पर चलने का विधान बताया गया है।
19. दक्ष स्मृति : इस स्मृति में धर्म पालन करने पर जोर दिया गया है। इसमें नारी को प्रतिष्ठापूर्ण स्थान प्रदत्त है। शरीर की शुद्धता और आन्तरिक शुद्धता जैसे विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई है।
20. आपस्तम्ब स्मृति : आपस्तम्ब में, गौ, ब्राह्मण, बालक आदि के पहुँचाने वाली हानि का विवेचन किया है। स्वार्थ की दृष्टि से जानवरों के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार की इसमें भर्त्सना की गई है।
इसके अतिरिक्त बौधायन, पुलस्त्य, अरुण, बुध, काश्यप, देवल, प्रजापति कपिल, बाधुल, विश्वमित्र, लोहित, नारायण, शाण्डिल्य, कण्व, भारद्वाज इत्यादि स्मृतियाँ हैं जो आचार-व्यवहार तथा अन्य विषयों को स्पर्श करती
हैं।
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